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वो 3 घन्टे अलग जिन्दगी के

Bimal Raturi
Bimal Raturi
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काफी अजीब लगा होगा न इस लेख का शीर्षक पढ़ के, पर ये 3 घन्टे वाकई एक दूसरी दुनिया के 3 घन्टे थे, एक ऐसी दुनिया के जो हमारी आम जिन्दगी से काफी परे है ‘‘चेशायर होम’’ हिमालय की शिवालिक श्रेणी में उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में बसा ‘‘चेशायर होम’’
जब मैं और मेरा दोस्त देवेन्द्र चेशायर पहुँचे तो वहाँ एक अजीब सी शान्ति देखने को मिली शान्ति इस लिये नहीं थी कि वहाँ कोई नहीं था शान्ति इस लिये थी कि गर्मी के दिन में 2ः30 बज रहे थे, हम जब गेट से अन्दर गये तो वहाँ बाहर हमें कोई नही दिखा जब हम थोडा वहाँ घूमे तो एक आदमी दिखा हमने उससे पूछा कि यहाँ कौन है तो वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था, देवेन्द्र ने कहा लगता है ये भी मानसिक विकलांग है, तभी वहाँ अन्दर से हमंे एक आदमी ने आवाज़ दी कि यहाँ से आइये   हम अन्दर गये हमने अपना परिचय दिया फिर जब हमने सबसे पहले उनका परिचय पूछा तो उन्होंनें बताया कि उनका नाम अखिल मित्तल है और वो वहाँ एकाउन्टेन्ट और अॅाफिस का काम देखतेे हैं। धीरे-धीरे बात आगे बढ़ी तो उन्होंनें बताया कि इस चेशायर होम की स्थापना अगस्त 1956 में कैप्टन लार्ड चेशायर ने की थी इसका मुख्य उद्देश्य ‘‘शारिरिक और मानसिक रुप से विकलंाग लोगो का ध्यान रखना और उन्हे सक्षम बनाना’’।
इस होम को 13 लोगों की प्रबन्धकीय समिति देखती है वर्तमान में इसके अध्यक्ष श्री पी.सी.अग्रवाल जी है हमने उन्हे खुद ही आगे कहने से रोक दिया क्योंकि हमारे लिये इतिहास से ज्यादा वर्तमान जरुरी था हम उनके कामों के बारे में जानना चाहते थे, तो अखिल मित्तल ने हमें कमला से मिलाया, हम पहले यहाँ की मुख्य कर्ता धर्ता यहाँ की अधीक्षक श्रीमती ममता गुप्ता से मिलना चाहते थे पर हम दिन मेंे गये थे तो वो खाना खाने गई थीं हमें बताया गया कि वो थोडी देर में आयंेगी तब तक हमने कमला की आप बीती सुनी उसने हमें बताया कि 6 दिसम्बर 2002 को जंगल में जाते हुऐ उसे बाघ ने हमला किया उसके पाँव को बड़ी ही क्षत-विक्षत अवस्था में छोड दिया किसी तरह उसे बचाया जा सका अल्मोड़ा बेस हास्पिटल में उसका इलाज चला पर 3 साल में ही डाक्टरो ने हाथ खडे़ कर दिये, गरीब पिता के लिये ये किसी सदमें से कम न था गाँव के लोगों ने का कि अब इलाज मत कराओ हो गया कोइ्र फायदा नही है पैसे फूंकने का, पर पिता ने का कि जब तक मेरी बेटी की सांसे चल रही है तब तक मै इसका इलाज करवाता रहूँगा, तभी वहाँ से एक कैम्प के माध्यम से वो ममता गुप्ता के सम्पर्क में आई उन्होंनें उसका इलाज हिमालयन हास्पिटल जौली ग्रान्ट में करवाया जहाँ उसका पाँाव काटा गया इसके बाद उसे जयपुर फुट लगाया गया आज वह सामान्य जीवन जी रही है, हमे कमला के चेहरे पर कुछ शिकन तक नही दिखी यह सब बताते हुऐ उसने हमें यह भी बताया कि उसने इस बार ओपन बोर्ड से 12 की परीक्षा दी है। जब हमने उसका लक्ष्य पूछा तो उसने बताया कि वह भी वो सब करना चाहती है जो ममता मैडम ने समाज के लिये किया वो भी उन सब बच्चों के लिये कुछ करना चाहती है, वह कहती है कि अगर मेरी नौकरी लग जायेगी तब मैं बाहर जाऊंगी पर फिर भी मैं हमेशा चेशायर होम से जुड़ी रहूँगी हम बात कर ही रहे थे कि चेशायर होम की अधीक्षिका श्रीमती ममता गुप्ता आ गई, हमने उनसे बात शुरु की तो उन्होने बताया कि वो बचपन से ही किसी कि लिये कुछ करना चाहती थी, एक बार उनके किसी रिश्तेदार ने एक अखबार का टुकड़ा उनकी तरफ फेंकते हुए कहा कि ममता नौकरी तो सभी करते है ये काम कर के दिखा तब मै जांनू, यह बात 1993 की है, जब वो यहाँ आई थी, उस समय उन्हे यहाँ अध्यापिका और सहायक का काम दिया गया, पर उनके लगन और मेहनत को देखकर 2 महीने बाद ही उन्हे चेशायर होम की अधीक्षिका बना दिया गया, उन्होने फिर कभी पीछे पलट कर नही देखा। अपनी जिन्दगी के 17 साल वो अभी तक यहाँ गुजार चुकी है। फटाफट ये बातें खतम करके मै चेशायर होम घूमना चाहता था, तो ममता मैडम खुद हमें अपने साथ ले गई। सबसे पहले हम फिजियोथैरेपी सेन्टर गये इसके बारे में मैम ने बताया कि यहाँ 10-15 बच्चे रोजाना आते है, जिन्हे होम की एम्बूलैन्स लेने जाती है। ये सेन्टर सरदार भगवान सिंह पी.जी. इंस्टीटयूट की मदद से चल रहा है। मै वहाँ पहले गया फिर ममता मैम आई जो खुशी उन बच्चों के चेहरे पर उन्हें देख कर थी उसे शब्दों में बयाँ नही किया जा सकता । वो उन के लिये माँ है, देवकी नही यशोदा माँ। हम ये सब देख ही रहे, कि ममता जी को जरूरी काम से जाना पड़ा उन्होने कमला को हमे होम दिखाने की जिम्मेदारी सौंप दी, हम कमला के साथ चलने लगे, उसने हमें बताया कि यहाँ 3 मुख्य वार्ड है- पुरुष महिला और बच्चे, जहाँ 6 से लकर 60 उम्र तक के लोग है। यहाँ 50 लोगों को रखने की क्षमता है 5 लोगों का रात का स्टाफ है। तब तक हम उनकी क्लास रुम में पहुँचे जहाँ विभिन्न प्रकार के खिलौने रखे थे। फिर कमला हमें दूसरे कमरे में ले गई जहाँ उनके द्वारा बनाए गये मोमबत्तियाँ, फोल्डर्स, ऊनी टोपी, जुराबें रखी थी। फिर वो हमे महिला वार्ड में ले गई फिर उसने एक औरत की तरफ इशारा करते हुए कहा उसका नाम विनोद खन्ना हैं काफी धर्मपरायण और समझदार औरत है। ‘‘वहाँ बताया गया हमें कि इसे पता नही कैसे पता चलता है कि कौन सा व्रत कब है और कौन सा कब ? उसके बाद हम उनके किचन में गये। उसने हमें बताया कि यहाँ पोषक तत्वों का पूरा ध्यान रखा जाता हे और सफाई व्यवस्था का भी पूर्ण रुप से ध्यान रखा जाता है, फिर हमने उनका स्टोर रुम देखा जहाँ चैरिटी से आया हुआ और खरीदा हुआ सामान रखा जाता है, ममता गुप्ता जी ने बताया था कि यह 100ः चैरिटेबल ट्रस्ट है, फिर उसके बाद हम पुरुष वार्ड और बच्चों के वार्ड में भी गये पुरुष वार्ड में कमला ने एक आदमी दिखाया ओर बताया इसका नाम रमेश है फिर उस व्यक्ति ने हमें गाना सुनाया ‘‘चाहूगाँ मै तुझे साँझ सवेरे…..’’ चेहरे पे एक चमक आई उस के…
इन सब के बीच चेशायर होम में एक ऐसा चेहरा भी दिखा जो शायद उन मंदबुद्धि और विकलांग लोगों के लिये अभिशाप से कम नहीं है 18 घन्टे के सामाजिक कार्य के लिये सेन्ट जोजफ्स एकेडमी देहरादून अपने बच्चों को वहाँ भेजती है, पर वहाँ वो उन बच्चों की तरफ से जो देखने को मिला वो वाकई शर्मनाक था वे एक विकलांग के चारों ओर घिर के उसका मजाक बना रहे थे। मुझे शर्म आई कि क्या ये है उनकी समाज सेवा?
अन्त में सब देखने के बाद हम थोड़ा और जानकारी के लिये ममता जी से मिले साथ में कमला तो थी ही, फिर हमने उनसे चेशायर होम का टाइम टेबल पूछा तो कमला ने बताया कि यहाँ 5 बजे उठना शुरु कर देते है फिर रोजमर्रा के काम होते हे, फिर 7 बजे नाश्ता होता है फिर उन्हे फिजियोथैरिपी, एक्टिवीटी क्लास के लिये ले जाया जाता है 11 बजे इनका फु्रट टाइम होता है जिसमें कोई भी एक फु्रट इन्हे दिया जाता है फिर 12 बजे खाना फिर 3 बजे चाय और थोड़ा बहुत हल्का फुल्का खाने को दिया जाता है और शाम 5ः30 बजे ही रात का खाना हो जाता है। ‘‘इतने जल्दी’’ मै चौंका तो उन्होनें बताया कि यह पहले से ही होता आया है और फिर स्टाफ सारा काम खतम करके 7 बजे तक निकल जाता है, कुछ जो थोड़ा जागरुक हैं तो 8-9 बजे तक टी.वी. देखते हैं, ओर सबको सुलाने के बाद ममता जी भी 11ः30 बजे तक सो जाती हैं, तभी वहाँ बगल में एक विकलांग आया ममता जी ने बताया कि इसका नाम हरजीत है, ये तकरीबन 50 साल का है फिर हरजीत ने हमें अरदास सुनाई ये सब कहने के बाद ममता जी ने बताया कि यह पूरी तरह से दान की रकम से चलता है दीवाल पर लगे बोर्ड की तरफ ईशारा करते  हुऐ उन्होने बताया कि आज का दिन का खाना श्री चर्चित गांधी की तरफ से है और रात का खाना श्री पीएम सिंह की तरफ से है उन्होनें बताया कि उनका सपना एक ऐसी डेरी फार्म खोलना है जहाँ सारे विकलांग लोग काम करे, उन्होने कहा हम विकलांगों को यह देखकर ध्यान रखते हैं कि वे क्या कर सकते हैं न कि ये कि वे क्या नहीं कर सकते इससे उनको समझना और भी आसान हो जाता है मुझे जो प्यार इन लोगों से मिला उसे मैं बयां नही कर सकती आस-पास के लोग भी पूरा सहयोग करते हैं लोग यहाँ कपडे, पैसे, राशन दान करते हैं और उसकी हम उन्हे रसीद देते हैं, हम उठने ही वाले थे कि वहाँ पर एक दान दाता आये उनका नाम आर. के. शर्मा और डॉ रविकान्त शर्मा था वे रुद्रपुर से थे वह यहाँ कपडे़ दान करना चाहते थे। हमें वहाँ समय हो गया था शाम हो गई थी मन तो नही था पर घड़ी उठने का ईशारा कर रही थी ममता जी ने हमे विदाई दी तब मेरे मन मे आया जिस महिला ने अपनी जिन्दगी का एक बड़ा हिस्सा इन लोगों के नाम कर दिया उसके पाँव जरुर छूने चाहिये मैने उनके पाँव छुऐ ओर विदा ली टाइम 5ः20 हो रहा था मेरा और देवेन्द्र दोनो का दिमाग झनझना रहा था कि हम सरकार को छोटी-छोटी बातों पे देाष देते हैं कि सरकार ने ये नही किया वो नहीं किया और ममता जी उस होम के लोगों को बच्चों की तरह पाल रही है वो भी पूर्णतः दान की राशि से और वो भी बिना किसी को दोष दिये, ये 3 घन्टे वाकई अलग जिन्दगी के 3 घन्टे थे

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