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मानसिक पुनर्निर्माण की जरुरत

Bimal Raturi
Bimal Raturi
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(मी नि बग्नु चांदू….हे माँ मी तें बचे ले..हे पिताजी मी तें बचे ले…)गढ़वाली भाषा में कहे गये इस वाक्य का मतलब है कि मैं नहीं बहना चाहता…हे माँ मुझे बचा ले…हे पिताजी मुझे बचा लो, यह बात अस्पताल में भर्ती वो लड़की रह रह कर कह रही है जब भी वह सोने की थोडा भी कोशिश कर रही है|इस ने इस आपदा माँ,बाप,घर परिवार सब कुछ गंवाया और इस वक़्त मानसिक अस्थिरता की स्थिति में है|
यह एक छोटी कहानी भर है जिसे शायद इतने बड़े देश में नज़रंदाज़ किया जा सकता है जहाँ लाखों बच्चे कुपोषण से मरते हो,सर्दी,गर्मी,बरसात, ट्रैफिक हर चीज से ही तो मरते हैं क्या क्या तो गिनाया जाये?
पर इसे नज़रंदाज़ तब नहीं किया जा सकता जब ये एक बड़े हिस्से की कहानी बन जाए,उत्तराखंड में 16,17 जून को जो कुछ भी हुआ उस से आधे से ज्यादा उत्तराखंड को हर तरह से नुकसान हुआ है,इस में जान माल तो है ही परन्तु स्मृतियों में वो कुछ भी अंकित हुआ है उसे दुबारा से हटा कर सही कर पाना एक चुनौती से कम नहीं है|

उत्तराखंड के चमोली,रुद्रप्रयाग,अगस्तमुनी,उत्तरकाशी आंशिक टिहरी के हजारों गावों ने इस आपदा में बहुत कुछ गंवाया है और इस में मानसिक स्वास्थ्य प्रमुख है, डर, दहशत, अनिद्रा, डरावने सपने, निराशा, जड़ता, उदासी, मायूसी, अफसोस, अपराधबोध, स्तब्धता अवसाद पानी से भय लगना,अजीब अजीब सी आवाजें सुनाई देना,शरीर में कंपकंपी रहना कुछ लक्षण भर हैं जिन से बाहर वो लोग बिना किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ की देख रेख में इलाज़ के बिना शायद ही निकल पायें|

उत्तराखंड सरकार का चेहरा हम इस आपदा में अच्छे से देख चुके हैं, बिभिन्न तरह की लापरवाहियां अलग अलग स्तर पर देखि गयी है,तब चाहे वो यात्रियों को निकालने में हुई देरी हो,खाद्य सामग्रियां पहुँचाने में लेट लतीफी हो या पुनर्निर्माण के लिए बनाये जाने वाले मास्टर प्लान की खामियां हों या मुआवजे की रकम के बंटवारे को लेकर ,हर स्तर पर खामियां ही खामियां नज़र आती हैं पर फिर भी,कम से कम वह यह तो कह रही है कि मंदिर का पुनर्निर्माण कराएँगे,सस्ता राशन देंगे,बैंक के कर्जे को लौटने में बढ़ाया गया समय,रोजगार देंगे,पुनर्निर्माण वैज्ञानिक ढंग से करेंगे आदि आदि, पर मुझे न मुख्यमंत्री का कोई बयान याद आता है न ही किसी मंत्री का, कि इस बड़ा इलाका जो आपदा के बाद मानसिक रूप से भी अब्यवस्थित हुआ हुआ है उसे पटरी पर लाने का क्या रोड मैप है, क्यूंकि हम मकान आज नहीं तो कल साल दो साल में बना सकते हैं पर मानसिक रूप से जो उन्हें क्षति पहुंची है उसे ठीक करना ज्यादा जरुरी है|

मुझे याद आता है यूनाइटेड स्टेट्स में 2007-2009 के बीच आई आर्थिक मंदी ने नोर्विच –न्यु लन्दन,ब्रुन्सविक,एब्लेने,फ्लिंट,उर्बना,कार्सन सिटी जैसे बड़े शहरों को पूरी तरह बरबाद कर दिया था,लाखों लोगों की नौकरियां चली गयी थी और बड़े बड़े कारोबार ख़त्म हो रहे थे, यह तबाही चाहे भले ही प्राकृतिक नहीं थी परन्तु इस आर्थिक मंदी के बाद अचानक फार्मा इंडस्ट्री में बड़ा बूम देखने को मेला और मुख्य रूप से उन दवाइयों की मांग बढ़ गयी जो मानसिक रोगों में ली जाती थी,मानसिक अस्पतालों में भीड़ बढ़ गयी मनोचिकित्सक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों की मांग बढ़ गयी और सरकार के सहयोग से हालातों पर काबू पाया गया|
इसी हालत को उत्तराखंड के हिसाब से देखते हैं बड़ी आपदा आई है,हजारों लोग मरे हैं,हजारों की तादात में लोगों के घर टूटे हैं,कई गायब हैं इतनी बड़ी विपत्ति के बाद लोगों के मानसिक पटल पर जो अंकित हुआ है उस से मानसिक अस्थिरता आना कोई बड़ी और अचरज की बात नहीं है| पर अचरज उस सोच पर है जिस में मानसिक स्वास्थ्य को सीधे पागलपन से जोड़ दिया जाता है और इसी सोच की वजह से कोई भी उत्तराखंड में आई इतनी बड़ी आपदा के बाद हुई मानसिक अस्तिरता पर बात करने तक को भी तैयार नहीं है| हमारे पास न मनोचिकित्सक है न ही मनोवैज्ञानिक न ही मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का सही एजेंडा कैसे हम इतनी बड़ी आपदा से पूरी तरह से पार पाएंगे?
डब्लू.एच.ओ के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा“दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना) है भारत में दैहिक यानि शारीरिक रूप से स्वस्थ आदमी को ही स्वस्थ मान लिया जाता है पर हम कभी मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते और तत्काल परिस्थितियों के अनुसार देखा जाये तो अगर उत्तराखंड में मानसिक स्वास्थ्य पर कार्य नहीं किया गया तो भविष्य क्या होगा कल्पना करना भी हमारे बस में नहीं है|

इस समय के हालातनुसार वहां जो परिस्थितियां हैं उस में जो मानसिक स्थिति से जो ज्यादा प्रभावित हुए हैं उस में बच्चे,युवा और महिलाएं ज्यादा शामिल हैं क्यूंकि उन्होंने तबाही का मंजर अपने सामने देखा और यह मंजर उन की कल्पना से परे था जिस से वो जल्दी मानसिक रूप से अस्थिर हो गये|

मानसिक अस्थिरता और मानसिक रोगों को जड़ से दूर किया जा सकता है और अगर सरकार मानसिक स्वास्थ्य को भी अपने एजेंडे में शामिल करती है तभी हम पूर्ण रूप से उत्तराखंड का पूर्ण पुनर्निर्माण कर सकते हैं और दुबारा ज़िन्दगी के सही सपने संजो सकते हैं|

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