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देहरादून के एक अखबार का सर्वे चल रहा है आजकल,कई लड़के लड़कियां उस टीम में हैं हमारे घर की तरफ जो टीम सर्वे कर रही थी उस में कई मेरे जानने वाले भी थे| कल शाम नुक्कड़ पर एक से मुलाकात हुई मैंने पूछा और भाई क्या हाल चाल?? क्या क्या निकल के आ रहा है सर्वे में ??? मेरा इतना कहना था कि वो अपना दुखड़ा रो पडा… भाई और सब तो जो भी निकल रहा हो पर इंसानियत ख़त्म हो गयी ये जरुर निकल रहा है… मैंने पूछा क्यूँ क्या हुआ??? तो उस ने मुझे बताया कि कल सर्वे करने के दौरान मैं धूप में काफी थक गया था तो मैंने एक घर में सर्वे करने के बाद पानी माँगा उस ने कहा कि “हमारे घर में पानी नहीं है आगे वाले घर से मागों”,जब मैंने आगे वाले घर में सर्वे ख़तम कर के उन से भी पानी माँगा तो उन्होंने भी मुझे यही कहा | मैं थक के चूर हो गया था और जैसे ही उन के गेट से बाहर निकला तो चक्कर खा कर गिर पडा, मैं उन के सामने ही गिरा था पर उन्होंने मुझे नहीं उठाया बगल में एक सब्जी वाला गुजर रहा था तो उस ने मुझे उठाया और पानी पिलाया | मैंने उस से पूछा भाई ये घटना कहाँ हुई तो उस ने हमारे ही पड़ोस वाले मोहल्ले के बारे में बताया| मैं निकल पडा उस घर की तरफ, इत्तेफाकन वो घर मेरे साथ बचपन में पढने वाले एक लडके का था, मैंने गेट खोल कर नमस्ते किया दोस्त की मम्मी को और सीधे कल वाली बात पे आया कि आंटी जी कल आप से किसी ने पानी माँगा और आप ने नहीं दिया और साथ ही वो लड़का आप के ही सामने बेहोश हुआ फिर भी आप गेट बंद कर के अन्दर चली गयी…
आंटी ने मुझे जवाब दिया – बेटा मैं तो डर गयी थी मैंने सोचा कोई कच्छा धारी गिरोह का होगा और जब वो मेरे सामने बेहोश हुआ तब तो मैं और डर गयी कि कहीं मैं उसे उठाने गयी और उस ने मुझे दबोच लिया… जवाब मुझे मिल चुका था गलत वो सर्वे करने वाला लड़का भी नहीं था और न ही गलत पानी न पिलाने वाली आंटी ही थी….
पर इस से एक नया सवाल जो मेरे मन में आया अगर दोनों ही अपनी जगह सही हैं तो फिर इंसानियत मरी तो मरी किस की वजह से …
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