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नाम- कलश वर्मा
उम्र -10 वर्ष
कक्षा- 6
स्कूल- हिमालय मार्डेन स्कूल राजीव नगर निकट रिस्पना पुल देहरादून
लक्ष्य – अध्यापिका बनना
देहरादून में आजकल विधानसभा सत्र चलने के कारण कई रास्ते बंद हैं,मुझे जोगीवाला जाना था तो फिर मैंने नेहरू कॉलोनी से पीछे वाला रास्ता चुना, मैं गुजर ही रहा था कि पुल के नजदीक एक बच्ची सब्जी की दुकान लगाये हुई थी और पढ़ भी रही थी, मैं आगे रुका और और फिर पीछे आकर उस बच्ची से एक किलो भिन्डी लिया, मुझे भिन्डी की जरुरत नहीं थी बस्स एक वजह मिल गयी मुझे उस बच्ची संग थोडा बतियाने की| नाम वाम पूछने के बाद मैंने उसे पूछा – घर में कौन कौन है?
उस ने जवाब दिया- मम्मी पापा और हम तीन भाई और दो बहिनें, मैं घर में सब से छोटी हूँ
मैं- पापा मम्मी क्या क्या करते हैं ???
कलश – पापा ठेकेदारी का काम करते हैं और मम्मी सब्जी की ठेली देखती है|
मैं- घर कहाँ है तुम्हारा ?
कलश– यहीं पास में पुल के नीचे |
मैं- तुम्हारी उम्र में कहाँ ध्यान रहता है इतने पढने लिखने का..खेलने का मन करता है और ऐसे में तुम इतनी भीड़ के बीच पढ़ रही हो…
कलश– (हँसते हुए) रात में लाइट नहीं रहती,और मुझे पढना भी होता है तो मैं स्कूल का काम यहीं पर बैठ कर कर लेती हूँ|
मैं- तो फिर यहाँ पर क्यूँ बैठी हो ? खेलने क्यूँ नहीं गयी ? जबकि सब्जी की दूकान तो मम्मी देखती है
कलश- हाँ मम्मी देखती है पर,अभी मम्मी गाय को चारा देने गयी है और फिर मेरी भी तो जिम्मेदारी बनती है दिन भर मम्मी थक जाती है कुछ देर मैं बैठ लूँ तो क्या हो जायेगा..खेल तो मैं स्कूल में भी लेती हूँ |
मैं- टीचर क्यूँ बनना चाहती हो?
कलश- ताकि मैं सब को पढ़ा सकूँ,मेरे घर के आसपास कई बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जाते उन्हें देख कर लगता है अगर मैं टीचर होती तो इन्हें घर में ही पढ़ा सकती हूँ |
तक़रीबन दस साल की उम्र में इतनी बड़ी सोच..मैं उस से अपनी खरीदी हुई भिन्डी के पैसे अदा किये और सोचने लगा उन बच्चों के बारे में जिन्हें सारी सुविधाएँ मिलती है और तब भी उनकी ज़िन्दगी की कोई दिशा नहीं होती और इस बच्ची की इतनी छोटी उम्र में भी अपने लक्ष्य को कितना बड़ा और ऊँचा रखा है और अपनी जिम्मेदारियों का ही पूरा एहसास है | वाह कलश तेरे जज्बे को सलाम…
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