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हेल्लो अज़नबी कैसी हो?क्या चल रहा है ज़िन्दगी में? बहुत दिन हो गए थे तुम से बतियाये हुए तो आज देर रात मन हुआ तुम्हे ख़त लिखने का… दुनिया में अलग अलग तरह के लोग होते हैं पर कुछ एक लोग होते हैं जो नज़रों में रहते हैं हरवक्त । एक आम इंसान की नज़र से देखूं तो पाता हूँ कि ये सब वो जान बुझ कर करते हैं पर अगर उनके जूतों में पांव ड़ाल कर देखूं तो समझ बनती है कि उन का नजरिया ही अलग है चीजों को देखने का ,उसे बिल्कुल फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप उस के बारे में क्या सोचते हैं? वो दुनिया को एक कैनवास की तरह देखते हैं और इंसान को कूची और इंसानियत को रंगों की तरह और इन सब के साथ वो सबसे अच्छी पेंटिंग बनाना चाहते हैं और जब भी कोई इस पेंटिग बनाने में कोई अड़चन डालता है या कोशिश करता है तो वो आवाज़ उठाते हैं। “प्रतिरोध की आवाज़””विरोध का स्वर” तरीका कुछ भी हो सकता है उन का| और सबसे मजेदार होती है आम आदमी की प्रतिक्रिया …अरे पहले काहे नहीं विरोध किया? जरूर इन का काम कुछ रुक गया होगा…ब्ला…ब्ला…ब्ला… विरोध का कोई वक़्त,तरीका नहीं होता और ये उस आदमी के ऊपर है कि वो कैसे अपना विरोध जताता है… लड़ाई कभी किसी व्यक्ति केंद्रित नहीं रहती उन लोगों की ,मतभेद वैचारिक है तंत्र को सुधारने के लिए..उस खूबसूरत इंसानियत के रंगों को बचाने की जद्दोजहद है ये सिर्फ… पर मुझे एक बात और भी लगती है आम लोग भी उस पेंटिंग का मुख्य हिस्सा हैं तो वो ख़ास लोग जो इस दुनिया को एक सुन्दर पेंटिग में बदलना चाहते हैं वो उन लोगों के और पास जाएँ और अहमियत समझाएं इंसानियत के अलग अलग रंगों की ताकि सारे लोग इस दुनिया को खूबसूरत बना सकें और अपने विरोध के स्वर को भी बल दे सकें उन लोगों के खिलाफ जो रोक रहे हैं इस दुनिया को खूबसूरत बनने में… आज के लिए इतना ही..जल्द ही बात करेंगे फिर…. तुम्हारा जज्बात-ए-बिमल
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