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“औरत ही औरत की दुश्मन है” के पीछे की कहानी

Bimal Raturi
Bimal Raturi
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शिवानी फिर से पेट से थी, 3 बेटियों और 2 बार गर्भपात के बाद उस के न चाहते हुए भी उस के पति ने बच्चे की लिंग जांच करवाई | इस बार भी लड़की ही थी यह बात पता चलते ही रवि ने फिर  शिवानी को बच्चा गिराने को कहा , वो इस के लिए राजी नहीं थी पर फिर भी जबरदस्ती उस का बच्चा गिरा दिया गया और इस दौरान ज्यादा खून बह जाने के कारण शिवानी की मौत हो गयी |
शिवानी की अचानक मौत से मुहल्ले में अफवाहों का गुबार निकल पड़ा और घुमा फिर के सब का सार इस पर पहुँचता कि शिवानी की सास को लड़का चाहिए था पहली लड़की के बाद से ही शिवानी की सास उसे लड़के के लिए ताने देने शुरू कर दिए थे और अपने बेटे को बार बार जांच करवाने के लिए कहने लगी और इस बार भी लड़की थी तो उसे मरवा दिया , हाँ बार बार गर्भपात से कमजोर हो चुकी शिवानी इस बार नहीं सह पाई और उस की मौत हो गयी |

हमारे इन आसपास की कहानियों को एक नए रूप में टीवी पर कभी न ख़त्म होने वाली “सास बहू की सीरीज” के रूप में हमारे सामने रखा | छोटी बहू ,बड़ी बहू,देवरानी,जेठानी,साली,माँ,बुआ जैसे रिश्तों से हमारा परिचय इस तरह से करवाया गया जिस से हमारा खुद का परिवार शक के दायरे में आ गया कि किस औरत पे बिश्वास करूँ सब की सब तो बुरी हैं |

इन सब बातों का निष्कर्ष एक लाइन में यह निकला कि “औरत ही औरत की दुश्मन होती है” |

जैसे ही हमारे आसपास कुछ भी हुआ हम ने सीधे कह दिया “इन औरतों के बीच तो पटती नहीं है खुद ही दुश्मन है एक दुसरे की” हर दायरों में हम ने ये बात फ़ैलाने की कोशिश की |

पर क्या सच में यह स्थापित की जा चुकी बात सच है ? क्यूंकि इस की आड़ में हम बहुत सारी बातें छुपा लेते हैं |

सन 2012 में दिल्ली में हुए दामिनी कांड के बाद जैसे ही बहस के केंद्र में महिला अधिकारों की बात आई तो चर्चा इस तरह सिमटने लगी कि महिलाएं ही नहीं चाहती कि महिलाओं का विकास हो तभी वह कभी महिला अधिकारों पर खुल कर बात नहीं करती , और इस बात को स्थापित करने के लिए कई स्तर पर तथ्य भी दिए गये |

हमारा समाज सदियों से पितृ सत्ता के बन्धनों में जकड़ा हुआ है | परिवार में निर्णय केंद्र हमेशा से पिता ही रहे हैं | हर सत्ता के केंद्र में हमेशा से ही कोई पुरुष रहा है | हमारे देश में महिलाओं की स्थिति क्या है यह बात बताने की शायद मुझे अलग से जरुरत नहीं है |

मानव का ब्यवहार और सोच इस बात पर बड़े हद्द तक निर्भर करती है कि उस का पालन पोषण कैसे हुआ है | परिवार का वातावरण, स्कूल और कॉलेज का माहौल , घर में निर्णय लेने का केंद्र बिंदु, पैसों का वितरण इस पर बहुत असर डालता है कि हमारी सोच कैसे बन रही है | किसी भी लड़की के जन्म के बाद से जब कभी भी उस ने अपने निर्णय कभी खुद लिए ही नहीं , जैसे उसे कहा गया सिर्फ वही उस ने किया यहाँ तक कि उस के सारे दायरे हमने ख़त्म कर दिए उस के बाद कैसे हम उम्मीद करते हैं कि उस की जो सोच हो उस में पितृ सत्ता का असर ना हो ? हमारी माँ ,दादी, नानी बुआ की रोकने टोकने की आदतें उसी पितृ सत्ता की सोच का प्रभाव है ,क्यूंकि उस ने बचपन से वही देखा और वह लोग उसी माहौल में पले बढे |

हम महिलाओं की सोच पर पितृ सत्ता का लेप लगा कर दूसरी महिला के सामने खड़ा कर के स्थापित करते हैं कि महिला ही महिला की दुश्मन है जबकि असर में दोष तो उस पितृसत्तात्मक परिवेश में है |

कोई महिला किसी दूसरी महिला की दुश्मन नहीं होती हमारा समाज से पितृसत्ता का वजूद ख़त्म न हो इस लिए इस बात को बार बार स्थापित करता है | क्यूंकि उसे डर है कि अगर महिला बराबरी के अधिकारों तक पहुँच गयी तो पितृ सत्ता की ईमारत भरभरा कर गिर पड़ेगी |

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